Dos and Don'ts of Shraddha

श्राद्ध में क्या करें क्या न करें
👉 यम स्मृति में पॉंच प्रकार के श्राद्धों का उल्लेख है - नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण।
👉 प्रतिदिन जल प्रदान (तर्पण) करने को 'नित्य श्राद्ध' कहते हैं।
👉 एकोद्दिष्ट श्राद्ध को नैमित्तिक श्राद्ध कहते हैं। यह श्राद्ध व्यक्ति की मृत्यु तिथि पर प्रतिवर्ष किया जाता है।
☝️ उक्त एकोद्दिष्ट (नैमित्तिक) श्राद्ध का तात्पर्य है कि सिर्फ मृत व्यक्ति के निमित्त एक पिण्ड का दान तथा कम से कम एक और अधिक से अधिक तीन ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है।
👉 किसी कामना की पूर्ति के निमित्त किए जाने वाले श्राद्ध को काम्य श्राद्ध कहते हैं।
👉 वृद्धिकाल में सन्तान जन्म तथा विवाह आदि माङ्गलिक कार्यों में जो श्राद्ध किया जाता है, उसे वृद्धिश्राद्ध (नान्दी श्राद्ध) कहते हैं।
👉 पितृपक्ष, अमावस्या अथवा पर्व की तिथि आदि पर जो सदैव श्राद्ध किया जाता है, उसे पार्वण श्राद्ध कहते हैं।
👉 सामान्य रूप से कम से कम वर्ष में दो बार श्राद्ध करना चाहिए।
☝️ पहला, व्यक्ति की मृत्यु तिथि पर और दूसरा पितृपक्ष में तिथि पर।
👉 धर्म शास्त्रों में श्राद्ध तथा तर्पण के लिए सगोत्र तथा विभिन्न गोत्र वाले पितरों (मृत व्यक्तियों) की गणना इस प्रकार की गई है, जिसमें 41 बन्धु- बान्धवों, पिता और माता पक्ष तथा ज्ञात - अज्ञात मृत व्यक्ति आदि शामिल हैं।
☝️ जो इस प्रकार हैं -
पिता, पितामह (दादा), प्रपितामह (परदादा), माता, पितामही (दादी), प्रपितामही (परदादी), विमाता (सौतेली मॉं), मातामह (नाना), प्रमातामह (परनाना), वृद्ध प्रमातामह (वृद्ध परनाना), मातामही (नानी), प्रमातामही (परनानी), वृद्धप्रमातामही (वृद्ध परनानी), स्त्री (पत्नी), सन्तान, चाचा, चाची, चाचा का पुत्र, मामा, मामी, मामा का पुत्र, अपना भाई, भाभी, भाई का पुत्र, फूफा, बुआ, बुआ का पुत्र, मौसा, मौसी, मौसी का पुत्र, अपनी बहन, बहनोई, बहन का पुत्र, श्वसुर, सासु, सद्गुरु, गुरु पत्नी, शिष्य, संरक्षक, मित्र, भृत्य (सेवक) और ज्ञात - अज्ञात।
👉 जिस दिन श्राद्ध हो उस दिन यथासंभव पुरुष सूक्त, पितृ सूक्त, रुचिस्तव तथा रक्षोघ्न सूक्त आदि का पाठ करना चाहिए।

अवतरित--------------------------- ज्योतिषाचार्य डॉक्टर पंडित चंद्रभूषण व्यास

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