Geeta Jayanti

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गीता जयंती
(मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी) 1/ 12/ 2025
विश्वके किसी भी धर्म या संप्रदाय के किसी भी ग्रंथ का जन्मदिन नहीं मनाया जाता, जयंती मनाई जाती है ।तो केवल श्रीमद्भागवत; की क्योंकि अन्य ग्रंथ किसी मनुष्य द्वारा लिखे या संकलित किए गए हैं। जबकि गीता का जन्म स्वयं श्रीभगवान के श्रीमुख से हुआ है।
श्री गीता जी का जन्म धर्म क्षेत्र, कुरुक्षेत्र में श्री भगवान के विभूति स्वरूप मार्गशीर्षमास में उनकी प्रिय तिथि शुक्ल पक्ष की एकादशी को हुआ था। यह तिथि मोक्षदा एकादशी के नाम से विख्यात है। गीता एक सार्वभौम ग्रंथ है। यह किसी देश काल, धर्म, संप्रदाय, जाति विशेष के लिए नहीं अपितु संपूर्ण मानव जाति के लिए है। इसे स्वयं श्रीभगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है। इसलिए इस ग्रंथ में कहीं भी
'श्रीकृष्णा उवाच' शब्द नहीं आया है।
बल्कि 'श्रीभगवाननुवाच का प्रयोग किया गया है। जिस प्रकार गाय के दूध को बछड़े के बाद सभी धर्म संप्रदाय के लोग पान करते हैं, इस प्रकार या गीता ग्रंथ भी सबके लिए जीवनपाथेय स्वरूप है । सभी उपनिषदों का सार ही गोस्वरूप गीता माता है। इसे दुहने वाले गोपाल श्री कृष्ण है, अर्जुन रूपी बछड़े के पीने से निकलने वाला महान अमृतसदृश दूध ही गीतामृत है।
**सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः ।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्*॥*
इस प्रकार वेदों और उपनिषदों का सार , इस लोक और परलोक दोनों में मंगलमय मार्ग दिखाने वाला कर्म, ज्ञान ,और भक्ति तीनों मार्गो द्वारा मनुष्य को परमश्रेयके साधनका उपदेश करने वाला, सबसे ऊंचे ज्ञान, सबसे विमल भक्ति, सबसे उज्जवल कर्म, यम, नियम, त्रिविध तप, अहिंसा, सत्य और दया के उपदेश के साथ-साथ धर्म के लिए धर्मका अवलंबन कर,अधर्म को त्याग कर युद्ध का उपदेश करने वाला यह अद्भुत ग्रंथ है। इसके छोटे-छोटे 18 अध्याय में इतना सत्य, इतना ज्ञान, इतने ऊंचे गंभीर सात्विक उपदेश भरे हैं ।
जो मनुष्यमात्र को नीची से नीची दशासे उठाकर देवताओ के स्थान में बैठा देने की शक्ति रखते हैं।
मनुष्य का कर्तव्य क्या है इसका बोध कराना गीता का लक्ष्य है गीता में कुल 18 अध्याय हैं महाभारत के भीष्म पर्व में सन्नीहित है। गीता सर्वशास्त्र मयी है। योगेश्वर श्री कृष्ण जी ने किसी धर्म विशेष के लिए नहीं अपितु मनुष्य मात्र के लिए उपदेश दिए हैं। कर्म करो कर्म करना कर्तव्य है। पर यह कर्म निष्कामभाव से होना चाहिए। गीता हमें जीवन जीने की कला सिखाती है , जीवन जीने की शिक्षा देती है ।केवल इस एक श्लोक के उदाहरण से ही अच्छी प्रकार से समझा जा सकता है।
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि॥
हम सब बड़े भाग्यवान है कि हमें इस संसार के घोर अंधकार से भरे घने मार्गोमें प्रकाश दिखाने वाला या छोटा किंतु अक्षय स्नेहपूर्ण धर्म दीप प्राप्त हुआ है, अतः हमारा भी यह धर्म कर्तव्य है कि हम इसके लाभको मनुष्यमात्र तक पहुंचाने का सतत प्रयास करें। इसी निमित्त गीता जयंती का महापर्व मनाया जाता है। इस पर जनता जनार्दन में गीता प्रचार के साथ ही श्री गीता के अध्ययन गीता की शिक्षा को जीवन में उतरने की स्थाई योजना बनानी चाहिए। इस हेतु निम्न कार्यक्रम किए जाने चाहिए।
1 गीता ग्रंथ पूजन।
2 गीता के वक्त भगवान श्री कृष्ण, उसके श्रोता नरस्वरूप भक्त प्रवर अर्जुन तथा उसे महाभारत में ग्रथित करने वाले भगवान वासुदेव का पूजन।
3 गीता यथासाध्य व्यक्तिगत और सामूहिक पारायण
4 गीता तत्व को समझाने तथा उसके विचार प्रसार के लिए सभाओं, प्रवचन, और गोष्ठियों का आयोजन।
5 विद्यालयों और महाविद्यालयो मैं गीता पाठ, गीता पर व्याख्यान का आयोजन।
6 गीता ज्ञान संबंधी परीक्षा का आयोजन तथा उसमें उत्तीर्ण छात्र छात्राओं को पुरस्कार वितरण।
7 मंदिर, देवस्थान आदिमें गीता कथाका आयोजन।
8 श्री गीताजीकी शोभायात्रा निकलना आदि।

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